भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे. ऐसे में उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की, तो वह अपना घर छोड़कर कानपुर चले गए थे.
लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची. हालांकि पहचानने में गलती हो जाने के कारण उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी थी.
सिख होने के नाते भगत सिंह के लिए उनकी दाढ़ी और बाल बहुत महत्वपूर्ण थे. मगर उन्होंने बाल कटवा दिए, ताकि वह अंग्रेज उन्हें पकड़ न सके.
ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के करीब एक साल के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए.
जेल के अंदर भी भगत सिंह का क्रांतिकारी रवैया कायम रहा. उन्होंने आक्रामक तरीके से भारत की स्वतंत्रता के लिए कैदियों को प्रेरित किया और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए.
अपने मुकदमे की सुनवाई के समय उन्होंने अपना कोई बचाव पेश नहीं किया, बल्कि इस अवसर का इस्तेमाल उन्होंने भारत की आजादी की योजना का प्रचार करने में किया.
उनको मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई, जिसे उन्होंने निर्भय होकर सुना.
जेल में रहते हुए उन्होंने विदेशी मूल के कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की मांग की. उनके साथ इलाज में भेदभाव के विरोध में उन्होंने 116 दिन की भूख हड़ताल भी की थी.
उनकी फांसी की सजा को 24 मार्च 1931 से 11 घंटे घटाकर 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे कर दिया गया. उन्हें फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था.
कहा जाता है कि भगत सिंह की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें फांसी पर लटकाने की जगह गोली मार कर मौत दी जाए. मगर अंग्रेजों ने उनकी इस इच्छा को नहीं माना
इस तरह भारत के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी को केवल 23 साल की उम्र में फांसी दी गई. उनकी मृत्यु ने सैकड़ों लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.