प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार ( Right to Life and Personal Library)
Indian Constitution Article 21
भारतीय संविधान में यह उपबंध किया गया है कि किसी व्यक्ति को प्राण तथा दैहिक स्वतंत्रता से विधि के अनुसार ही वंचित किया जा सकेगा अथवा नहीं। Article 21 इस संबंध में यह उल्लेख करता है कि “किसी व्यक्ति को उसके Life तथा Personal Liberty से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अथवा नहीं।” यह अनुच्छेद प्रत्येक व्यक्ति को प्राण तथा दैैैहिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्रदान करता है यह अधिकार भारत के प्रत्येक नागरिक तथा विदेशी नागरिक दोनों ही को प्राप्त है अनुच्छेद 21 का उद्देश्य कार्यपालिका द्वारा दैहिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप को रोकना है कार्यपालिका द्वारा इस अधिकार को विधिक प्रक्रिया द्वारा ही छीना जा सकता है।
प्राण का अधिकार
प्राण के अधिकार का अर्थ मानव की गरिमा और सभ्यता के अनुसार जीवन जीने का अधिकार है यह अधिकार सुरक्षा गृह या कारागार में भी है। फ्रैंसिस कोणाला बनाम दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र, AIR 1981 SC के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि, ” कोई कार्य जो किसी व्यक्ति के किसी अंग के उपयोग या कार्यक्षमता को बिगाड़ता या आहत करता है अथवा उसके साथ हस्तक्षेप करता है, या तो स्थायी रूप से या अस्थायी रूप से भी, Article 21 के निषेध (Inhibition) के भीतर होगा। ” इसी मामले में न्यायमूर्ति भगवती ने यह बात कही थी कि, ” हम समझते हैं कि प्राण के अधिकार के अंतर्गत मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार एवं सब कुछ जो इसके साथ जाता है अर्थात जीवन की केवल आवश्यक वस्तुएं जैसे पर्याप्त पोषण,कपड़ा, सर पर छत, और पढ़ने लिखने एवं अपने को विविध रूप से अभिव्यक्त करने का भ्रमण करने और साथ ही मानव दे धारियों से मिलने जुलने की सुविधाएं आती है। “
इसके अंतर्गत वह सब कुछ आता है जो किसी मनुष्य के जीवन को सार्थक बनाता है जैसे उसकी परंपरा, संस्कृति, विरासत और उस विरासत को पूर्ण संरक्षण, जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं, हानिकारक औषधियों पर पाबंदी ओलियम गैस के रिसाव के विरुद्ध उचित अनुतोष, एक्सरे विकिरण के बुरे प्रभाव के विरुद्ध उचित अनुतोष जब कोई व्यक्ति अनुच्छेद 21 के भंग के लिए अनुतोष प्राप्त करना चाहता है तो उसे ऐसा कार्य दिखाना होगा जो प्रत्यक्ष, स्पष्ट और मूर्त हो और जिससे जीवन की पूर्णता संकट में आ गई हो।
दैहिक स्वतंत्रता का अर्थ एवं विस्तार
अनुच्छेद 21 में प्रयुक्त दैहिक स्वतंत्रता शब्द पर्याप्त विस्तृत अर्थ वाला शब्द है और इस रूप में इसके अंतर्गत दैहिक स्वतंत्रता के सभी आवश्यक तत्व शामिल है जो व्यक्ति को पूर्ण बनाने में सहायक है इस अर्थ में इस पदावली में अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत स्वतंत्रता के सभी अधिकार भी आते हैं किंतु प्रारंभ में उच्चतम न्यायालय ने इस पदावली का बहुत संकुचित अर्थ लगाया।
विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया (Procedure established by Law)
विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का अर्थ यह है कि उस प्रक्रिया से ही जो संसद या विधानसभा रा बनाई जाती है या निर्धारित की जाती है अमेरिका के संविधान में उपयुक्त वाक्यांश के स्थान पर सम्यक विधि प्रक्रिया ( Due Process of Law) वाक्यांश का प्रयोग किया जाता है।
मेनका गांधी के मामले से पहले की स्थिति
मेनका गांधी की मामले के पूर्व अनुच्छेद 21 की व्याख्या विस्तृत नहीं थी ए०के०गोपालन बनाम मद्रास राज्य AIR 1952 SC के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह भी निर्धारित किया था कि यद्यपि स्वतंत्रता एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है किंतु अनुच्छेद 21 में इसके क्षेत्र को दैहिक विश्लेषण लगाकर सीमित कर दिया और इस अर्थ में दैहिक स्वतंत्रता का अर्थ शारीरिक स्वतंत्रता मात्र से है अर्थात बिना विधि के अधिकार के किसी व्यक्ति को कारावास में निरुद्ध करने आदि की स्वतंत्रता है यह परिभाषा डायसी द्वारा प्रतिपादित परिभाषा के आधार पर है डायसी के अनुसार दैहिक स्वतंत्रता का अर्थ सभी व्यक्तियों की बिना विधिक औचित्य के दंड, गिरफ्तारी या अन्य शारीरिक और अवरोधों के विरुद्ध स्वतंत्रता है अनुच्छेद 21 तथा अनुच्छेद 19 स्वतंत्रता के विभिन्न पहलुओं से संबंधित हैं इसी बात में उच्चतम न्यायालय ने विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया शब्दावली में नैसर्गिक न्याय को शामिल करने से इंकार कर दिया और कहा कि विधि शब्द का अर्थ राज्य द्वारा बनाई गई विधि से है ।
मेनका गांधी के बाद की स्थिति
मेनका गांधी बनाम भारत संघ AIR 1978 SC के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 को एक नया आयाम दिया न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि प्राण का अधिकार केवल भौतिक अस्तित्व तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें मानव गरिमा को बनाए रखते हुए जीने का अधिकार है दैहिक स्वतंत्रता शब्दावली अत्यंत व्यापक अर्थ वाली शब्दावली है और इसके अंतर्गत ऐसे बहुत से अधिकार शामिल है जिन से व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गठन होता है। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने पहली बार अभिनिर्धारित किया की प्रक्रिया का अर्थ कोई प्रक्रिया नहीं है बल्कि ऐसी प्रक्रिया है जो उचित न्याय पूर्ण और युक्तियुक्त अनुच्छेद 21 में प्रयुक्त विधि शब्द से तात्पर्य विधायिका द्वारा पारित विधि से नहीं वरन ऐसी विधि से है जो कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित हो न्यायमूर्ति भगवती ने उल्लेखित किया कि यह आवश्यक नहीं कि किसी अधिकार का उल्लेख किसी अनुच्छेद में किया जाए तभी वह मूल अधिकार की श्रेणी में आएगा यदि कोई अधिकार किसी मूल अधिकार के प्रयोग के लिए आवश्यक है तो वह भी मूल अधिकार होगा भले ही उसका उल्लेख संविधान में न किया गया हो इस प्रकार मेनका गांधी के मामले में ए०के० गोपालन के निर्णय को पूर्णता खारिज कर उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 को नया आयाम प्रदान किया।
न्यायालय के अनुसार दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार केवल शारीरिक स्वतंत्रता प्रदान करने तक सीमित नहीं है वरन यह विस्तृत अर्थ वाली पदावली है जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के अधिकार शामिल हैं जो व्यक्ति की दैहिक स्वतंत्रता को पूर्ण बनाते हैं जिनमें से कुछ को अनुच्छेद 19 के अधीन स्पष्ट एवं विभिन्न मूल अधिकारों का दर्जा दिया गया है और उन्हें अतिरिक्त संरक्षण प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 21 सभी प्रकार की मनोवैज्ञानिक अवरोधों के विरुद्ध भी संरक्षण प्रदान करता है।
अनुच्छेद 21 के अधीन बनाई गई विधि की विधि मान्यता की जांच अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19(5) के अधीन भी की जाएगी और यदि उसके अधीन लगाए गए निरबंधन युक्तियुक्त और मनमानी हैं तो उस विधि को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाएगा।
प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के मूल अधिकार के तहत प्राप्त अधिकार
मरने का अधिकार ( Right to Die)
श्रीमती ज्ञान कौन बनाम पंजाब राज्य AIR 1996 SC के वाद में निर्धारित किया गया कि ‘ मरने का अधिकार’ प्राण की अधिकार में शामिल नहीं है, क्योंकि प्राण के अधिकार में ही ‘जीने का अधिकार’ शामिल है जबकि मरने का अधिकार “जीने का अधिकार” के विरुद्ध है।
चिकित्सा का अधिकार (Right to Medical Aid)
परमानंद कटारा बनाम भारत संघ AIR 1989 SC के मामले में यह निर्धारित किया गया कि राज्य की अनुच्छेद 21 के अधीन यह बाध्यता है कि वह प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की रक्षा करें चाहे वह दोषी हो या ना हो प्रत्येक रोगी को तुरंत चिकित्सा सहायता मिलनी चाहिए।
जेल में बंदी मां के साथ रहने वाले बच्चों का संरक्षण
आरडी उपाध्याय बनाम आंध्र प्रदेश राज्य AIR 2006 SC कि मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्देश दिया कि जेल में पैदा हुए बच्चों को जेल में जन्म का प्रमाण पत्र नहीं दिया जाएगा और 6 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों को मां के साथ नहीं रखा जाएगा।
शिक्षा पाने का अधिकार (Right To Education)
उच्चतम न्यायालय ने उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य AIR 1993 SC के मामले में निर्धारित किया कि जीवन के अधिकार में शिक्षा का अधिकार भी शामिल है तथा अनुच्छेद 21 इसे मूल अधिकार की मान्यता देता है उन्नीकृष्णन में दिए गए निर्णय के परिणाम स्वरुप वर्तमान में 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2001 द्वारा नया अनुच्छेद 21a जोड़ा गया जिसमें शिक्षा के अधिकार को अलग से मूल अधिकार बनाया गया है अनुच्छेद 21a के द्वारा 6 से 14 वर्ष तक के बालकों को शिक्षा का मूल अधिकार प्रदान किया गया है।
इसके अलावा अन्य बहुत सारे अधिकार हैं जिस को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत रखा गया है जैसे विदेश यात्रा का अधिकार, यौन उत्पीड़न से संरक्षण का अधिकार, पेंशन का अधिकार, अवैध गिरफ्तारी तथा पुलिस अभिरक्षा में अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध संरक्षण, अंतर जाति विवाह का अधिकार, बिजली पाने का अधिकार आदि ऐसे अधिकार हैं जो भारत के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त हैं।