रूस पर यूक्रेन में अपने आक्रमण में थर्मोबैरिक हथियारों - जिसे वैक्यूम बम के रूप में भी जाना जाता है - का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है।
यह बहुत ही विवादास्पद है क्योंकि वैक्यूम बम अन्य बमों की अपेक्षा में बहुत ही विनाशकारी होता है यह मनुष्य को भाप बना सकता है
एक वैक्यूम बम, जिसे एरोसोल बम या ईंधन वायु विस्फोटक भी कहा जाता है, में दो अलग-अलग विस्फोटक आवेशों के साथ एक ईंधन कंटेनर होता है।
इसे रॉकेट के रूप में लॉन्च किया जा सकता है या विमान से बम के रूप में गिराया जा सकता है। जब यह अपने टारगेट से टकराता है, तो पहला विस्फोटक चार्ज कंटेनर को खोलता है और मिश्रण को बादल के रूप में बिखेरता है।
इसके बाद बम में लगा इग्निशन सोर्स आग को पैदा करता है, जो बहुत तेजी से पूरे इलाके में फैलकर एक जबरदस्त वैक्यूम बनाता है। इस कारण हुए विस्फोट की ताकत इतनी ज्यादा होती है कि घरों की छतें तक उड़ जाती हैं।
पास में मौजूद इंसान तो तुरंत भाप में बदल जाता है। दूर के लोगों पर भी इसका इतना प्रभाव पड़ता है कि आंतरिक अंगों में खून बहने लगता है।
वैक्यूम बमों को 1960 के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ने विकसित किया था। सितंबर 2007 में रूस ने अब तक के सबसे बड़े वैक्यूम हथियार में विस्फोट किया, जिससे 39.9 टन के बराबर ऊर्जा निकली थी।
वैक्यूम बमों का पहला उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के समय का है जब इसे शुरू में जर्मन सेना द्वारा इस्तेमाल किया गया था।
इस बम को फादर ऑफ ऑल बम भी कहा जाता है। इससे परमाणु बम की तरह गर्मी पैदा होती है और यह धमाके के साथ अल्टासोनिक शॉकवेब निकालता है जो और अधिक तबाही लाता है।
बता दें कि सितंबर 2007 में रूस ने अब तक के सबसे बड़े थर्मोबैरिक हथियार में विस्फोट किया, जिससे 39.9 टन के बराबर ऊर्जा निकली थी। वहीँ अमेरिका के थर्मोबैरिक हथियारों के प्रत्येक यूनिट की कीमत तकरीबन 16 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा है।