राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति pardoning power of the president

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खबरों में क्यों है? 


हाल ही में हमारे देश के राष्ट्रपति महामहिम राम नाथ कोविंद जी ने उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली शबनम की मृत्युदंड की pardon की मांग को अस्वीकार कर दिया। 
power of Presidential Pardon

                power of Presidential Pardon 


प्रमुख बातें


जहां अमेरिका के राष्ट्रपति को मृत्युदंड के लिए स्वविवेक से निर्णय करने का अधिकार है वहीं हमारे संविधान में हमारे देश के राष्ट्रपति को इस अधिकार का उपयोग मंत्रिमंडल की सलाह के आधार पर करना होता है। 

अमेरिकी राष्ट्रपति को प्राप्त क्षमादान की शक्ति? 


 अमेरिका के राष्ट्रपति को केंद्र से संबंधित अपराधिक मामलों में क्षमादान अथवा अपराध की प्रकृति को देखते हुए सजा की प्रकृति को बदलने का अधिकार वहां की संविधान द्वारा प्राप्त है। 
अमेरिकी राष्ट्रपति को प्राप्त यह शक्ति कार्यकारी एवं अपने विवेक पर आधारित होती है,  राष्ट्रपति को इसके लिए जवाबदेय नहीं ठहराया जा सकता है।  और वह अपने आदेश को बताने के लिए बाध्य भी नहीं किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए कुछ सीमाओं का निर्धारण किया गया है। 
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट का यह मानना है कि राष्ट्रपति को प्राप्त यह अधिकार असीमित है और कांग्रेस इस पर किसी भी प्रकार का निरबंधन नहीं लगा सकती है। 

वो सीमायें क्या हैं? 


1- अमेरिका में महाभियोग को छोड़कर, अमेरिका के खिलाफ किए गए किसी भी प्रकार के अपराधिक कार्यों के लिए दंड विराम और  क्षमा करने की शक्ति राष्ट्रपति को प्राप्त है। 
2- इसके अलावा यह अधिकार केंद्र के खिलाफ किए गए किसी भी प्रकार के अपराध के लिए लागू होती हैं,  राज्यों के लिए नहीं। 
3- ऐसे लोग जिनको राष्ट्रपति ने क्षमा कर दिया है वह लोग अपने व्यक्तिगत स्तर पर राज्य से क्षमा के लिए अनुरोध कर सकते हैं। 

भारतीय राष्ट्रपति को Pardoning  करने का अधिकार? 


 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत भारत का राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति को दिए गए किसी भी प्रकार के दंड से मुक्त कर सकता है,  जो निम्नलिखित मामलों में अपराधी पाए जाते हैं। 
 1- केंद्र द्वारा निर्मित विधि के विरुद्ध पाए गए किसी अपराधी को क्षमा करने का अधिकार, 
2- सैनिक न्यायालयों द्वारा दिए गए दंड को, 
3-  ऐसे अपराधों के लिए दंड जिसमें अपराधी को मृत्युदंड दिया गया हो। 

सीमाओं के अधीन रहते हुए? 


 भारतीय संविधान के द्वारा राष्ट्रपति को क्षमादान करने का जो अधिकार दिया गया है, उसका प्रयोग वह मंत्रिमंडल की सलाह के बिना नहीं कर सकता है। 
 भारत की सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई महत्वपूर्ण मामलों में निर्णय देते हुए यह कहा है कि, राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल के द्वारा दिए गए  सलाह पर ही कोई कार्यवाही करनी होगी।  इससे संबंधित सन 1980 में भारत संघ बनाम मारूराम के केस में इसके अलावा, सन 1994 में धनंजय चटर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य का मामला प्रमुख है। 

 Pardoning Powey करने की प्रक्रिया? 


सबसे पहले राष्ट्रपति के आई हुई दया याचिका को मंत्रिमंडल  से सलाह लेने के लिए गृह मंत्रालय के पास भेजा जाता है। 
 और मंत्रिमंडल उस दया याचिका को अपराधी के संबंधित राज्य के पास भेजा जाता है और वहां से जवाब मिलने के बाद उस दया याचिका पर अपनी सलाह देता है। 

पुनर्विचार करने की शक्ति? 


 यद्यपि की भारत के राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल के द्वारा दिए गए सलाह को मानना बाध्यकारी होता है, परंतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 (1)के अधीन वह इस सलाह पर पुनर्विचार करने के लिए मंत्रिमंडल को वापस भेज सकता है, परंतु अगर मंत्रिमंडल ने उस याचिका पर कोई बदलाव नहीं किया है, तो इस बार राष्ट्रपति को उस सलाह को मानना बाध्यकारी हो जाएगा। 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत प्रत्येक राज्य के राज्यपाल को भी क्षमा दान करने की शक्ति दी गई है। 

भारत के राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपाल को प्राप्त क्षमा दान करने की शक्ति के बीच अंतर? 


सैनिक मामलों, क्योंकि भारत का राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर होता है, इसलिए उसको सैनिक न्यायालय द्वारा किसी भी सैनिक को दिए गए दंड को क्षमा करने का अधिकार भारतीय संविधान द्वारा दिया गया है। लेकिन यह अधिकार राज्यपाल को प्राप्त नहीं है। 
जहां भारत का राष्ट्रपति मृत्युदंड से संबंधित किसी भी मामले में क्षमादान करने की शक्ति रखता है, वही राज्य के राज्यपाल को मृत्युदंड के अलावा सभी प्रकार के अपराधों में क्षमादान प्रदान करने की शक्ति दी गई है। 
अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को प्राप्त समाधान करने की शक्ति, अनुच्छेद 161 के तहत प्राप्त राज्यपाल को दिए गए अधिकार से अधिक है। 

क्षमा ( Pardon):- इसके तहत किसी अपराधी को दिया गया किसी भी प्रकार का दंड चाहे वह मृत्युदंड हो या आजीवन कारावास सभी प्रकार के दंगों से पूर्णतया मुक्त कर दिया जाता है। और वह व्यक्ति एक सामान्य व्यक्ति की तरह रह सकता है। अर्थात उसको पूरी तरह  से सभी  प्रकार के दोषों से मुुक्त कर दिया जाता है। 

लघुकरण (Commutation):-  इस शब्दावली का मतलब यह होता है कि,  सजा की प्रकृति को ही बदल देना जैसे मृत्युदंड की जगह कठोर कारावास में बदलना। 
परिहार (Remission):-   इस शब्दावली का मतलब की सजा की अवधि को ही परिवर्तित कर देना, जैसे 2 साल के कठोर कारावास को 1 साल के कठोर कारावास में बदल देना। 
विराम (Respite):- किसी विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सजा की अवधि को कम करना जैसे कि, शारीरिक अपंगता अथवा महिलाओं की गर्भावस्था के कारण ऐसा किया जा सकता है। 
प्रविलंबन (Reprieve):-  इसका अर्थ यह होता है कि, सजा को कुछ समय के लिए आगे बढ़ा दिया जाता है इसका मुख्य कारण यह होता है कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या उनके विदेश दौरे के कारण ऐसा किया जाता है इसमें फांसी की अवधि को कुछ दिनों के लिए रोक दिया जाता है। 

                         Shabnam Case Amroha

उत्तर प्रदेश के अमरोहा की रहने वाली शबनम को प्रविलंबन  के तहत ही उसके फांसी की तारीख को कुछ समय के लिए बढ़ा दिया गया है। 
स्वतंत्रता के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, कि जब किसी भारतीय महिला को किसी अपराध के लिए मृत्युदंड दिया जा रहा है। शबनम को अपने ही परिवार के 7 लोगों की निर्मम हत्या के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय ने मृत्युदंड की सजा सुनाई हैं। 
उसके बाद शबनम ने राष्ट्रपति से क्षमा याचना की याचिका दायर की थी, जिसे राष्ट्रपति ने उस क्षमा याचिका को रद्द कर दिया है, जिसके बाद अब शबनम को भारत के एकमात्र मथुरा जेल जिसमें महिलाओं को फांसी दी जाती है वहां पर फांसी दी जाएगी। 

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